बाल गंगाधर तिलक एक भारतीय सामाजिक सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे। इस लेख में बाल गंगाधर तिलक की जीवनी, उपलब्धियों, विरासत, शिक्षा और मृत्यु के बारे में जानकारी दी जा रही हैं ।

केशव गंगाधर तिलक, जिन्हें अक्सर बाल गंगाधर तिलक के नाम से जाना जाता है, एक पत्रकार, शिक्षक और भारतीय स्वतंत्रता के लिए कार्यकर्ता थे। बाल गंगाधर तिलक भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के पहले नेता थे। वे लाल बाल पाल ट्रिओ (Trio) के तीन सदस्यों में से एक थे। ब्रिटिश उपनिवेशी अधिकारियों द्वारा उन्हें ‘भारतीय अशांति के पिता’ के रूप में संदर्भित किया गया।

बाल गंगाधर तिलक का जीवन परिचय (Bal Gangadhar Tilak Biography):

बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को हुआ था। उनका जन्म ब्रिटिश भारत के बंबई राज्य के रत्नागिरी जिले में हुआ था, जो अब महाराष्ट्र, भारत है। वे एक मराठी हिंदू चित्पावन ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। श्री गंगाधर तिलक उनके पिता थे और पार्वती बाई गंगाधर उनकी माता थीं। बाल गंगाधर तिलक का पैतृक घर चिखली में था।

बाल गंगाधर तिलक के पिता, गंगाधर तिलक संस्कृत के महान विद्वान और स्कूल शिक्षक थे, जब बाल गंगाधर मात्र सोलह वर्ष के थे तो उनके पिता का निधन हो गया था ।

बाल गंगाधर तिलक का संक्षिप्त सार (Bal Gangadhar Tilak Short Bio):

वास्तविक नामकेशव गंगाधर तिलक
प्रशिद्ध नामबाल गंगाधर तिलक
जन्म की तिथि23 जुलाई 1856
पिता का नामश्री गंगाधर तिलक
माता का नामपार्वती बाई गंगाधर
पत्नी का नामसत्या भामा तिलक
पुत्रो के नामरामभाऊ बालवंत तिलक, विश्वनाथ बालवंत तिलक, और श्रीधर बालवंत तिलक।
शिक्षाऑनर्स बैचलर ऑफ आर्ट्स, सरकारी लॉ कॉलेज से अपनी एल.एल.बी. की डिग्री
जन्म का स्थान रत्नागिरि, महाराष्ट्र
मृत्यु की तिथि1 अगस्त 1920

लोकमान्य तिलक शिक्षा (Lokmanya Tilak Education):

लोकमान्य ने 1877 में पुणे के डेक्कन कॉलेज से गणित में ऑनर्स बैचलर ऑफ आर्ट्स की डिग्री प्राप्त की। सेमेस्टर के बीच में, उन्होंने अपने एम.ए. कार्यक्रम को छोड़कर एल.एल.बी. कार्यक्रम में दाखिला लिया। उन्होंने 1879 में सरकारी लॉ कॉलेज से अपनी एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त की।

लोकमान्य तिलक (Bal Gangadhar Tilak Family):

लोकमान्य तिलक ने 1877 में पुणे स्थित डेक्कन कॉलेज से गणित में ऑनर्स के साथ बैचलर ऑफ आर्ट्स की डिग्री हासिल की। सेमेस्टर के मध्य में, उन्होंने मास्टर ऑफ आर्ट्स के कार्यक्रम को छोड़कर विधि (एल.एल.बी.) को चुना। इसके परिणामस्वरूप, उन्होंने 1879 में सरकारी लॉ कॉलेज से एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त की।

बाल गंगाधर तिलक ने 1871 में केवल 16 वर्ष की आयु में सत्या भामा तिलक से विवाह किया। इस दांपत्य जीवन से उनके तीन पुत्र हुए: रामभाऊ बालवंत तिलक, विश्वनाथ बालवंत तिलक, और श्रीधर बालवंत तिलक।

लोकमान्य तिलक के बारे में जानकारी (Information About Lokmanya Tilak):

तिलक को अंग्रेजी लेखक वैलेंटाइन चिरोल की पुस्तक “भारतीय अशांति” में “भारतीय अशांति का पिता” कहा गया, क्योंकि उनके कट्टर राष्ट्रवादी विश्वास थे। राजनीतिक आंदोलनों के अलावा, उन्होंने सांस्कृतिक और धार्मिक पुनर्जागरण की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने छत्रपति शिवाजी की जयंती पर शिव जयंती मनाने को भी बढ़ावा दिया और महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी को एक प्रसिद्ध उत्सव बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

लोकमान्य तिलक का राजनीतिक करियर (Lokmanya Tilak Political Career):

1890 में, बाल गंगाधर तिलक ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) में शामिल होने का फैसला किया। उनके विचार, जो कि पार्टी के आत्मशासन के लिए मध्यम मार्ग के खिलाफ एक स्पष्ट रूप से चुनौती थे, वह इस बात को सामने लाये कि ब्रिटिश शासन को केवल औपचारिक संवैधानिक प्रयासों से खत्म नहीं किया जा सकता। इसीलिए उन्होंने प्रमुख कांग्रेस नेता गोपाल कृष्ण गोखले के दृष्टिकोण को चुनौती देने का निर्णय लिया। तिलक ने एक सशस्त्र विद्रोह के माध्यम से ब्रिटिशों को देश से बाहर निकालने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने स्वदेशी आंदोलन का समर्थन करते हुए ब्रिटिश उत्पादों के बहिष्कार की भी जोरदार वकालत की थी I

फिर भी, उनकी रणनीतियों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के अंदर गहरा मतभेद खड़ा कर दिया। इस मूल दार्शनिक मतभेद के कारण, तिलक और उनके समर्थकों को कांग्रेस के कट्टरपंथी गुट के रूप में देखा जाने लगा। पंजाब के लाला लाजपत राय और बंगाल के बिपिन चंद्र पाल ने तिलक के राष्ट्रवादी प्रयासों का समर्थन किया। इस त्रयी को मिलकर ‘लाल-बाल-पाल’ के नाम से जाना गया। कांग्रेस के उदार और कट्टरपंथी धड़ों के बीच 1907 के राष्ट्रीय अधिवेशन में कड़ा टकराव हुआ, जिसके कारण कांग्रेस दो हिस्सों में बंट गई।

लोकमान्य तिलक का इतिहास (Lokmanya Tilak History):

बाल गंगाधर तिलक ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष लड़ा। गांधी जी से पहले, वे भारत के सबसे महत्वपूर्ण नेताओं में से एक थे। उन्होंने स्वतंत्रता के लिए एक विशाल आंदोलन शुरू किया, जिसमें धार्मिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरूकता पर बल दिया। तिलक को एक सामाजिक रूढ़िवादी और कट्टर देशभक्ति वाले व्यक्ति के रूप में भी जाना जाता था।

बंगाल के बंटवारे के बाद, तिलक ने लॉर्ड कर्ज़न की योजनाओं का समर्थन किया, जिनका मकसद देशभक्ति के आंदोलन को कमजोर करना था। इन योजनाओं में बहिष्कार और स्वदेशी आंदोलन शामिल थे। स्वदेशी आंदोलन का उद्देश्य लोगों को स्थानीय रूप से बनाई गई चीजें खरीदने के लिए प्रेरित करना था, जिससे विदेशी उत्पादों के बहिष्कार से हुई कमी को पूरा किया जा सके। इस मुहिम में उन भारतीयों का सामाजिक तौर पर बहिष्कार किया गया, जो विदेशी वस्तुओं का इस्तेमाल करते थे।

तिलक ने घोषणा की कि स्वदेशी और बहिष्कार के आंदोलन वास्तव में एक ही बात के दो अलग-अलग पहलू हैं। उन्होंने गोपाल कृष्ण गोखले के शांतिपूर्ण तरीके का खंडन किया और बंगाल और पंजाब के अन्य भारतीय राष्ट्रवादियों, जैसे बिपिन चंद्र पाल, का समर्थन भी शक्ति से किया।

अखिल भारतीय होम रूल लीग की स्थापना (All India Home Rule League founded):

1915 में, जब प्रथम विश्व युद्ध की गड़गाह में भारत का राजनीतिक माहौल तेजी से बदल रहा था, बाल गंगाधर तिलक घर लौटे। तिलक की मुक्ति ने एक अभूतपूर्व खुशी का माहौल पैदा किया। इसके बाद, उन्होंने एक और अधिक परिपक्व दृष्टिकोण के साथ राजनीति में वापसी की। 1916 में, बाल गंगाधर तिलक, जोसेफ बैपटिस्टा, एनी बेसेंट, और मुहम्मद अली जिन्ना ने अपने साथी राष्ट्रवादियों के साथ पुनर्मिलन करने का निर्णय लेते हुए अखिल भारतीय होम रूल लीग की स्थापना की। अप्रैल 1916 तक इस लीग के 1400 सदस्य थे, और 1917 तक यह संख्या 32,000 हो गई।

लोकमान्य तिलक सामाजिक दृष्टिकोण (Lokmanya Tilak Social View):

पुणे में महिलाओं के अधिकारों और अछूत प्रथा के खिलाफ सुधारों के दो उदार आंदोलनों का बल गंगाधर तिलक ने कड़ा विरोध किया। 1885 में पुणे में पहली स्थानीय बालिका उच्च विद्यालय की स्थापना और इसके पाठ्यक्रम का बल गंगाधर तिलक ने अपने समाचार पत्र, मराठा और केसरी के माध्यम से जोरदार विरोध किया।

इसके अतिरिक्त, बाल गंगाधर तिलक जाति के बीच विवाहों के खिलाफ थे, विशेष रूप से उन विवाहों में जहाँ एक उच्च जाति की महिला एक निम्न जाति के पुरुष से विवाह करती थी। हालांकि बाल गंगाधर तिलक ने सहमति की आयु विधेयक का विरोध किया, जिसने लड़कियों के विवाह की आयु को दस से बारह वर्ष तक बढ़ा दिया, उन्होंने लड़कों और लड़कियों के लिए क्रमशः विवाह की आयु को सोलह और बीस वर्ष तक बढ़ाने वाले एक परिपत्र पर हस्ताक्षर करने में सक्षम रहे।

तिलक लिंग मुद्दों पर नारीवादी नहीं थे। उन्होंने आधुनिक समय में हिंदू महिलाओं की शिक्षा के विचार को अस्वीकार कर दिया। वे एक अधिक धार्मिक व्यक्ति थे जो मानते थे कि महिलाओं को घर पर रहकर अपने पतियों और बच्चों की सेवा करनी चाहिए। हालांकि उन्होंने पहले एक बैठक में इसके खिलाफ आवाज उठाई थी, लेकिन 1918 में अछूत प्रथा समाप्त करने के लिए एक याचिका पर हस्ताक्षर करने से तिलक ने इनकार कर दिया।

बाल गंगाधर तिलक सामाजिक सुधार (Bal Gangadhar Tilak Social Reform):

बाल गंगाधर तिलक ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी सेवा के आकर्षक प्रस्तावों को स्वीकार करने के बजाय राष्ट्रीय जागरूकता के महान उद्देश्य के प्रति समर्पित होने का निर्णय लिया। वह एक अद्वितीय सुधारक थे जिन्होंने अपने जीवन का पूरा समय महिलाओं के शिक्षा और सशक्तिकरण के अधिकारों के लिए संघर्ष करने में बिताया। बाल गंगाधर तिलक की सभी बेटियों को शिक्षा प्राप्त हुई, और उन्होंने उन्हें 16 वर्ष से अधिक उम्र में ही विवाह के लिए प्रस्तुत किया।

बाल गंगाधर तिलक द्वारा गणेश चतुर्थी और शिवाजी जयंती के भव्य उत्सवों का सुझाव दिया गया था। उन्होंने विश्वास किया कि इन अवसरों का उत्सव मनाने से भारतीय अधिक एकजुट और देशभक्त बनेंगे। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि बाल गंगाधर तिलक की कट्टरपंथ के प्रति भागीदारी और समर्थन को उचित श्रेय नहीं मिला।

बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु (Bal Gangadhar Tilak Death):

बाल गंगाधर तिलक की सेहत उनके द्वारा जालियांवाला बाग हत्याकांड से असंतोष के कारण बिगड़ने लगी। उन्होंने भारतीयों से आग्रह किया कि वे अपनी खराब सेहत के बावजूद आंदोलन जारी रखें। वह आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए चिंतित थे, लेकिन उनकी सेहत ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। इस समय, बाल गंगाधर तिलक की मधुमेह ने उन्हें गंभीर रूप से कमजोर कर दिया था। जुलाई 1920 के मध्य में, उनकी बीमारी और बिगड़ गई, और उस वर्ष 1 अगस्त को, उनका निधन अचानक हो गया।

बाल गंगाधर तिलक की विरासत (The Legacy of Bal Gangadhar Tilak):

बाल गंगाधर तिलक एक सामाजिक रूढ़िवादी थे, फिर भी उनके भीतर गहरी राष्ट्रीयता की भावना थी। वे एक समर्पित हिंदू थे जिन्होंने हिंदू शास्त्रों का उपयोग करते हुए धर्म और दर्शन पर व्यापक लेखन किया। वे अपने समय के सबसे प्रसिद्ध प्रभावों में से एक थे, एक शक्तिशाली वक्ता जिन्होंने लाखों लोगों को अपने उद्देश्य के लिए एकत्रित किया।

गणेश चतुर्थी, जिसे तिलक ने स्थापित किया, अब महाराष्ट्र और आस-पास के राज्यों में सबसे महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रतीकात्मक प्रतिनिधि के रूप में तिलक को कई पुस्तकों में चित्रित किया गया है। तिलक द्वारा स्थापित मराठी समाचार पत्र आज भी प्रकाशित होता है, हालाँकि अब यह साप्ताहिक के बजाय दैनिक रूप से प्रकाशित होता है।

यह जीवनी सार्वजनिक स्रोतों में उपलब्ध जानकारी पर आधारित है और इसे पूरी तरह से सटीक नहीं माना गया है। उल्लेखित विवरण केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए हैं, और पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे तथ्यों की पुष्टि अपने स्वयं के शोध और विश्वसनीय स्रोतों के माध्यम से करें।