शहीद भगत सिंह का जीवन परिचय Shaheed Bhagat Singh  Biography in Hindi

भगत सिंह के अदम्य सहस और जनून की वजह ने भारतीय युवाओं को भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए बहुत अधिक प्रेरित किया था। आज के नवयुवक भी शहीद भगत सिंह से प्रेरणा लेते हैं शहीद भगत सिंह की जयंती के उपलक्ष्य में रिर्जव बैंक ने पाँच रुपये का नया सिक्का जारी किया, जिसमें भगत सिंह के नाम व चित्र को हिंदी व अंग्रेजी शब्दों के साथ प्रदर्शित किया गया था।

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भगत सिंह की विचारधारा (Ideology of Bhagat Singh)

आजादी की बात तब तक अधूरी है, जब तक देश के क्रांतिकारियों का  जिक्र ना हो इसी तरह वीर भगत सिंह के जिक्र के बिना आज़ादी की बात अधूरी हैं, शहीद भगत सिंह ने भारत मां के लिए मौत को ‘महबूबा’ और आजादी को ‘दुल्हन’ माना था, इस वीर ने ही सिर पर ‘कफन’ का सेहरा बांधकर अपनी मां से कहा था ‘मेरा रंग दे बंसती चोला’…।

शहीद भगत सिंह का जीवन परिचय (Shaheed Bhagat Singh Biography in Hindi):

भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को लायलपुर जिले के बंगा (जो वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित है) के एक सिख परिवार में हुआ। उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलां है, जो पंजाब, भारत में स्थित है। यह एक किसान परिवार से आते थे। इनका पिता का नाम किशन सिंह संधू और माता का नाम ‘विद्यावती कौर’ था भगत सिंह अपने माता पिता की तीसरी संतान थे।

उनके पिता और चाचा गदर पार्टी के सदस्य थे। इनके  जन्म के समय उनके पिता ‘किशन सिंह संधू’ और घर के कुछ सदस्य जेल में थे। उन्हें वर्ष 1906 में ब्रिटिश सरकार द्वारा जबरन लागू किये हुए औपनिवेशीकरण विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन करने के इल्जाम में जेल में डाल दिया गया था।

भगत सिंह की शिक्षा (Education of Bhagat Singh):

भगत सिंह ने गांव में ही अपनी 5वीं कक्षा तक की पढाई पूरी की और उसके बाद उनके पिता किशन सिंह ने उनका दाखिला लाहौर के दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल, में कराया ।

भगत सिंह लाहौर के नेशनल कॉलेज से BA कर रहे थे। वही पर उनकी मुलाकात सुखदेव थापर, भगवती चरन और कुछ अन्य लोगो से हुयी। उस समय आजादी की लड़ाई चरम पर थी। उस समय लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी। इधर भगत सिंह युवाओं में देश प्रेम के बीज बो रहे थे और उधर उनके घर वाले उनकी शादी का विचार कर रहे थे। भगत सिंह ने शादी से साफ मना कर दिया। भगत सिंह कॉलेज में अनेक नाटक कार्यकर्मो में भाग लिया करते थे। उनके नाटक, स्क्रिप्ट  देशभक्ति से परिपूर्ण होते थे, जिससे वह कॉलेज के नौजवानों को आजादी के लिए आगे आने को प्रोत्साहित करते थे।

स्कूली शिक्षा के दौरान ही भगत सिंह ने अलग अलग देशों में हुई क्रांति के बारे में अध्ययन किया और बहुत ही छोटी उम्र में भगत सिंह, महात्मा गांधी जी के ‘असहयोग आंदोलन’ से जुड़ गए थे। लेकिन वह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्याधिक प्रभावित थे। 

जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था तब भगत सिंह 12 वर्ष के थे , बस इस हत्याकांड ने उनके छोटे से दिमाग में देश को आज़ाद करने का जनून घर कर गया था । ये बिगुल था अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ, गांधी जी के असहयोग आन्दोलन के रद्द होने के बाद उनका गुस्सा अंग्रेजों के खिलाफ और बढ़ गया। वो गांधी जी का सम्मान जरूर करते थे लेकिन उन्होंने गांधी जी के अहिंसात्मक आन्दोलन की जगह देश की स्वतन्त्रता के लिये हिंसात्मक क्रांति का मार्ग अपनाना सही समझा।

आजाद, सुखदेव, राजगुरु उन्होंने जुलूसों में भाग लेना प्रारम्भ किया और कई क्रान्तिकारी दलों के सदस्य बने। उनके दल के प्रमुख क्रान्तिकारियों में चन्द्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु थे।

भगत सिंह का प्रारंभिक जीवन (Early life of Bhagat Singh):

भगत सिंह के जन्म के समय उनके पिताजी जेल में थे। भगत सिंह ने बचपन से ही अपने घर वालों में देश भक्ति देखी थी। उनके चाचा अजित सिंह बहुत बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। जिन्होंने भारतीय देशभक्ति एसोसिएशन की स्थापना की थी। अजित सिंह के खिलाफ 22 केस दर्ज थे। इसीलिए इन मामलों से बचने के लिए उन्हें ईरान जाना पड़ा था। अमृतसर में 13 April 1919 को हुए जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था।

अपने देश के लिए मात्र 23 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। भगत सिंह ने बचपन से ही अत्याचार देखा था। वह अपने लोगो को प्रताड़ित होते हुए नहीं देखना चाहता था। इसीलिए उन्होंने अपने मित्रो के साथ मिलकर अंग्रेजो के खिलाफ बगावत शुरू कर दी थी। देश की आजादी में लाखों लोगों ने अपने प्राण न्योछावर किये थे, उन्ही महान स्वतंत्रता सेनानियों में से शहीद भगत सिंह भी एक थे।

भगत सिंह की स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी (Participation in Freedom Struggle):

शहीद भगत सिंह को भारतीय आंदोलन के सबसे प्रभावशाली युवा क्रांतिकारियों में गिना जाता है। उन्होंने मात्र 23 वर्ष की काम उम्र में ही अपने क्रन्तिकारी साथियों के साथ अपने देश के लिए प्राण न्यौछावर कर दिए थे। जिसके कारण वह आजादी की लड़ाई के समय सभी नौजवानों के लिए यूथ आइकॉन बन गए थे।

शहीद भगत सिंह देशभक्ति अंग्रेजों के खिलाफ हिंसा विरोधी भयंकर विस्फोटों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि उनके पास विचार और बुद्धि की एक अपूर्व प्रतिभा भी थी, जिससे वे सांप्रदायिक तर्ज पर भारत के विभाजन का पूर्वानुमान लगा सकते थे, उस समय के बहुत से प्रमुख नेता भी इस बात का अनुमान लगाने में असमर्थ थे। धर्म से ज्यादा देश के हितों को ध्यान में रखते हुए परिपक्व और तर्कसंगत विचार उनके एक प्रमुख गुण को प्रदर्शित करते थे। उनकी शैक्षिक योग्यता इस तथ्य को प्रदर्शित करती है कि वह केवल उन्मादी जनांदोलनों के जनक ही नहीं थे, बल्कि अपनी राय और विचारों को अच्छी तरह से सोच-समझ कर प्रकट करते थे।

वह छोटी सी उम्र में ही नौजवानों को देश की आजादी के लिए प्रोत्साहित करने लगा था। इसीलिए वह आजादी की लड़ाई के समय सभी के लिए एक आदर्श स्वतंत्रता सैनानी था। भगत सिंह अपने युवा साथियो के साथ मिलकर देश को अंग्रेजो के चंगुल से मुक्त करना चाहते थे। उनका मानना था कि युवा कुछ भी कर सकते है और देश के नौजवान देश को आजाद करा सकते है। भगत सिंह सभी नौजवानों को अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह करने के लिए नई दिशा दिखाते रहते थे। उनका जीवन संघर्ष से भरा हुआ था। आज भी सभी युवा उनके जीवन से प्रेरणा लेते है। भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे।

उन्होंने महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए असहयोग आन्दोलन का खुलकर समर्थन किया था। वह खुले आम अंग्रेजों को ललकारा करते थे। वह गाँधीजी के कहने पर ब्रिटिश बुक्स को जला दिया करते थे। वर्ष 1922 में चौरी-चौरा हत्‍याकांड के बाद गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन बंद कर दिया था। इस वजह से भगत सिंह उनके फैसले से खुश नहीं थे और उन्होंने गाँधी जी की अहिंसावादी बातों को छोड़ दूसरी पार्टी ज्वाइन करने की सोची। गाँधी जी ने जब किसानों का साथ नहीं दिया तब भगत सिंह बहुत निराश हुए। उसके बाद उनका अहिंसा से विश्वास उठ गया था। तब उन्होंने फैसला किया कि सशस्त्र क्रांति ही स्वतंत्रता दिलाने का एक मात्र रास्ता है। बाद में वह चन्द्र शेखर आजाद के नेतृत्‍व में गठित हुई गदर दल में शामिल हो गए। काकोरी काण्ड में राम प्रसाद बिस्मिल सहित 4  क्रान्तिकारियों को फाँसी और 16 क्रान्तिकारियों को कारावास की सजा मिली, जिससे भगत सिंह इतने अधिक क्रोधित हुए कि चन्द्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन से जुड़ गए और उसे एक नया नाम दिया हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन। इस संगठन का उद्देश्य सेवा, त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले नवयुवक तैयार करना था। जो बाद में क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो सके।

भगत सिंह की पहली मुलाकात जब चन्द्रशेखर आजाद से हुई तो भगत सिंह ने जलती हुई मोमबती पर हाथ रखकर कसम खायी थी कि उनकी जिन्दगी देश के लिए हैं और देश पर ही कुर्बान होगी और उन्होंने अपनी वह कसम पूरी कर दिखायी।

जब जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड हुआ था, तब भगत सिंह लगभग 12 वर्ष के थे। जब भगत सिंह को इसकी खबर मिली तब वह स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जलियाँवाला बाग पहुँच गए। इस उम्र में भगत सिंह अपने चाचाओं की क्रान्तिकारी किताबें पढ़ कर सोचते थे कि इनका रास्ता सही है कि नहीं ?

हालाँकि वह भी अन्य देशवासियों की तरह महात्मा गाँधी का सम्मान करते थे। बाद में उन्होंने गाँधी जी के अहिंसात्मक आन्दोलन की जगह देश की स्वतन्त्रता के लिए हिंसात्मक क्रांति का मार्ग को चुना। उन्होंने जुलूसों में भाग लेना प्रारम्भ किया तथा कई क्रान्तिकारी दलों के सदस्य बने। उनके दल के प्रमुख क्रान्तिकारियों में चन्द्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु जैसे महान क्रांतिकारी थे।

काकोरी कांड (Kakori Kand):

इसके बाद भगत सिंह ने चंद्रशेखर आजाद और अन्य क्रांतिकारी सदस्यों के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पन्नों में दर्ज वह दिन जब 9 अगस्त 1925 को शाहजहाँपुर से लखनऊ के लिए चली पैसेंजर ट्रेन जिसे रास्ते में पड़ने वाले छोटे से स्टेशन काकोरी में रोककर ब्रिटिश सरकार का सारा खजाना लूट लिया गया। यह घटना इतिहास में “काकोरी कांड” नाम से बहुत प्रसिद्ध है। 

लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला (Revenge for the Ddeath of Lala Lajpat Rai):

सन 1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए भयानक प्रदर्शन हुए थे। “साइमन वापस जाओ” का नारा लगाते हुए, वे लोग लाहौर रेलवे स्टेशन पर ही खड़े रहे। जिसके बाद इन प्रदर्शनों में भाग लेने वाले क्रांतिकारियों पर अंग्रेजी शासन ने लाठी चार्ज भी किया। जिसमें लाला लाजपत राय बुरी तरह घायल हो गए थे। इस तरह लाठी चार्ज से आहत होकर उनकी म्रत्यु हो गई।

इस घटना से भगत सिंह से रहा नहीं गया और उन्होंने एक गुप्त योजना के तहत पुलिस सुपरिण्टेण्डेण्ट स्काट को मारने की योजना बनाई। योजना के अनुसार भगत सिंह और राजगुरु लाहौर कोतवाली के सामने व्यस्त मुद्रा में टहलने लगे। उधर जयगोपाल अपनी साइकिल को लेकर ऐसे बैठ गए जैसे कि वो ख़राब हो गई हो।गोपाल के इशारे पर दोनों सचेत हो गए।

उधर चन्द्रशेखर आज़ाद पास के डी० ए० वी० स्कूल की चारदीवारी के पास छिपकर घटना को अंजाम देने में रक्षक का काम कर रहे थे। 17 December 1928 को करीब 4:15 बजे ए० एस० पी० सॉण्डर्स के आते ही राजगुरु ने एक गोली सीधी उसके सर में मारी। यह गोली उनकी मृत्यु के लिए काफी थी। लेकिन तुरन्त बाद भगत सिंह ने भी 3-4 गोली दाग कर उसके मरने का पूरा इन्तज़ाम कर दिया था।

इन दोनों ने जैसे ही भागना शुरू किया, तभी एक सिपाही ने इनका पीछा करना शुरू कर दिया। चन्द्रशेखर आज़ाद ने उसे सावधान किया – “आगे बढ़े तो गोली मार दूँगा।” नहीं मानने पर आज़ाद ने उसे गोली मार दी और वह वहीं पर मर गया। इस तरह इन लोगों ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला ले लिया था।

एसेम्बली में बम फेंकना (Throwing Bomb in Assembly):

सन 1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए भयानक प्रदर्शन हुए थे। “साइमन वापस जाओ” का नारा लगाते हुए, वे लोग लाहौर रेलवे स्टेशन पर ही खड़े रहे। जिसके बाद इन प्रदर्शनों में भाग लेने वाले क्रांतिकारियों पर अंग्रेजी शासन ने लाठी चार्ज भी किया। जिसमें लाला लाजपत राय बुरी तरह घायल हो गए थे। इस तरह लाठी चार्ज से आहत होकर उनकी म्रत्यु हो गई।

इस घटना से भगत सिंह से रहा नहीं गया और उन्होंने एक गुप्त योजना के तहत पुलिस सुपरिण्टेण्डेण्ट स्काट को मारने की योजना बनाई। योजना के अनुसार भगत सिंह और राजगुरु लाहौर कोतवाली के सामने व्यस्त मुद्रा में टहलने लगे। उधर जयगोपाल अपनी साइकिल को लेकर ऐसे बैठ गए जैसे कि वो ख़राब हो गई हो।गोपाल के इशारे पर दोनों सचेत हो गए।

उधर चन्द्रशेखर आज़ाद पास के डी० ए० वी० स्कूल की चारदीवारी के पास छिपकर घटना को अंजाम देने में रक्षक का काम कर रहे थे। 17 December 1928 को करीब 4:15 बजे ए० एस० पी० सॉण्डर्स के आते ही राजगुरु ने एक गोली सीधी उसके सर में मारी। यह गोली उनकी मृत्यु के लिए काफी थी। लेकिन तुरन्त बाद भगत सिंह ने भी 3-4 गोली दाग कर उसके मरने का पूरा इन्तज़ाम कर दिया था।

इन दोनों ने जैसे ही भागना शुरू किया, तभी एक सिपाही ने इनका पीछा करना शुरू कर दिया। चन्द्रशेखर आज़ाद ने उसे सावधान किया – “आगे बढ़े तो गोली मार दूँगा।” नहीं मानने पर आज़ाद ने उसे गोली मार दी और वह वहीं पर मर गया। इस तरह इन लोगों ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला ले लिया था।

भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त और राजगुरु के साथ 1929 में असेंबली में बम धमाके की योजना बनाई। यह बम सिर्फ आजादी की लड़ाई के आगाज की सूचना अंग्रेजों के लिए पहुंचाना था। भगत सिंह चाहते थे कि इसमें कोई खून खराबा न हो और अँग्रेजों तक उनकी ‘आवाज़’ भी पहुँचे। इस काम में क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनको पूरा सहयोग किया ।भगत सिंह और बटुकेश्वर ने एक-एक बम फेंका। योजना के अनुसार 8 April 1929 को केन्द्रीय असेम्बली में इन दोनों ने एक ऐसे स्थान पर बम फेंका जहाँ कोई मौजूद न था। पूरा हॉल धुएँ से भर गया।

धमाके में किसी की मौत नहीं हुई थी। धमाका अंग्रेजी  सरकार को जगाने के लिए किया गया था  और इनके द्वारा कुछ पर्चे भी बाटें गए बम फेंकने के बाद वहीं पर इन्होने  अपनी गिरफ्तारी भी दी। भगत सिंह के पास मौका था भागने का और वो आराम से भाग सकते थे लेकिन उन्होंने भागने से मना कर दिया  क्योंकि  वो गिरफ्तार होने ही आये थे ।  बम फोड़ने के बाद बाद उन्होंने “इंकलाब-जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद-मुर्दाबाद!” का नारा लगाया और अपने साथ वो कुछ पर्चे लाये थे उनको हवा में उछाल दिए। इसके बाद दोनों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया । जिसके बाद अंग्रेजों ने 23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी दे दी। भगत सिंह को  विश्वास था कि उनकी शहादत से भारतीय जनता ओर जागरूक हो जायेगी और ऐसा उनके जिन्दा रहने से शायद ही हो पाये। इसी कारण उन्होंने मौत की सजा सुनाने के बाद भी माफ़ीनामा लिखने से साफ मना कर दिया था।

चूँकि भगत सिंह खून खराबे  के पक्षधर नहीं थे। परन्तु वह वामपंथी विचारधारा को मानते थे। वह समाजवाद का पक्का पोषक था। कॉंग्रेस के सत्ता में रहने के बावजूद भगत सिंह को शहीद का दर्जा नही दिलवा पायी, क्योंकि वे केवल भगत सिंह के नाम का इस्तेमाल युवाओं को अपनी पार्टी से जोड़ने के लिए करते थे। उन्हें पूँजीपतियों द्वारा मजदूरों के शोषण की नीति पसन्द नहीं आती थी। उस समय अँग्रेज ही फलफूल रहे थे।

भगत सिंह द्वारा जेल में बिताये हुए दिन (Days Spent by Bhagat Singh in Jail):

जेल में भगत सिंह ने लगभग 2 साल व्यतीत किये थे। इस समय अंतराल में वह लेख लिखकर अपने क्रान्तिकारी विचार व्यक्त करते रहते थे। जेल में रहते हुए भी उनका अध्ययन लगातार जारी रहा। उस समय भगत सिंह द्वारा लिखे गये लेख व सगे सम्बन्धियों को लिखे गये पत्र आज भी उनके विचारों के दर्पण हैं। उन्होंने अपने लेखों के माध्यम से कई पूँजीपतियों को अपना शत्रु बताया था।

उन्होंने लिखा कि मजदूरों का शोषण करने वाला चाहें एक भारतीय ही क्यों न हो, वह उनका शत्रु है। उन्होंने जेल में अंग्रेज़ी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था मैं नास्तिक क्यों हूँ? जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हडताल की। उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिये थे। भगत सिंह को जेल में बहुत यातना सहन करनी पड़ी थी। उस समय कांग्रेस दल के नेता भी उन्हें बचा नहीं सके थे।

शहीद भगत सिंह की फांसी (Hanging of Martyr Bhagat Singh):

26 अगस्त 1930 को अदालत ने भगत सिंह को भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302 तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6F तथा IPC की धारा 120 के तहत अपराधी करार दिया गया। 7 अक्तूबर 1930 को अदालत के द्वारा 68 पृष्ठों का निर्णय दिया, जिसमें भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फाँसी की सजा सुनाई गई।

कोर्ट में भी तीनों इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते रहे थे। फाँसी की सजा सुनाए जाने के बाद लाहौर में धारा 144 लगा दी गई। भगत सिंह ने जेल में रहकर भी बहुत यातनाएं सहन की। उस समय भारतीय कैदियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता था। उन्हें ना तो अच्छा खाना दिया जाता था और ना ही कपड़े।

कैदियों की स्थिति में सुधार करने के लिए भगत सिंह ने जेल के अंदर भी आन्दोलन शुरू कर दिया। उन्होंने अपनी मांग पूरी करवाने के लिए कई दिनों तक पानी नहीं पिया था। और ना ही अन्न का एक दाना भी ग्रहण किया। अंग्रेज पुलिस उन्हें बहुत मारा करती थी। उन्हें तरह तरह की यातनाएं दी जाती थी। जिससे भगत सिंह परेशान होकर हार जाएँ, लेकिन उन्होंने अंत तक हार नहीं मानी। वर्ष 1930 में भगत जी ने Why I Am Atheist नाम की किताब लिखी।

अंत में 23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई। कहा जाता है कि भगत सिंह को 24 मार्च 1931 को फांसी दी जानी थी लेकिन उस समय देश में उनकी रिहाई के लिए प्रदर्शन हो रहे थे। इस वजह से ब्रिटिश सरकार को डर था कि कही प्रदर्शनकारी उन्हें आजाद न करा ले।

 फांसी से पहले भगत सिंह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे तब जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का समय आ गया है तो उन्होंने कहा था- “ठहरिए! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले।” फाँसी पर जाते समय वे तीनों मस्ती से यह गीत गा रहे थे I

इसके कुछ समय बाद ही ‘भगत सिंह’, ‘शिवराम राजगुरु‘ और ‘सुखदेव‘ को 23 व 24 की मध्यरात्रि में ही फांसी दे दी और जनसमूह के विरोध प्रदर्शन के डर से ब्रिटिश सरकार ने सभी का अंतिम संस्कार भी कर दिया।

इस तरह भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु हमेशा के लिए अमर हो गये। इसके बाद लोग अंग्रेजों के साथ-साथ गाँधीजी को भी इनकी मौत का जिम्मेदार समझने लगे।  जब गाँधीजी काँग्रेस के लाहौर अधिवेशन में भाग लेने जा रहे थे, तब लोगों ने काले झण्डों के साथ गाँधी जी का स्वागत किया। कहा जाता है कि महात्मा गाँधी चाहते तो भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु की फांसी रुकवा सकते थे, लेकिन गाँधीजी ने फांसी नहीं रुकवाई।

शहीद भगत सिंह और उनके साथियों के बलिदान को आज भी याद किया जाता है। हर साल उनकी मुत्यु तिथि को ‘शहीद दिवस’ के रूप में मनाया जाता है और इस दिन उन्हें देश के सभी जनों द्वारा श्रद्धांजलि दी जाती है। 

भगत सिंह के अनमोल वचन (Precious Words of Bhagat Singh):

  1. मेरी गर्मी के कारण राख का एक-एक कण चलायमान हैं मैं ऐसा पागल हूँ जो जेल में भी स्वतंत्र हैं।
  2. प्रेमी, पागल व कवि एक ही थाली के चट्टे बट्टे होते हैं अर्थात सामान होते हैं।
  3. किसी को “क्रांति” को परिभाषित नहीं करना चाहिए। इस शब्द के कई अर्थ व मतलब हैं जो कि इसका उपयोग या दुरपयोग करने वाले तय करते हैं।
  4. यदि बेहरों को सुनाना हैं तो आवाज तेज करनी होगी। जब हमने बम फेका था तब हमारा इरादा किसी को जान से मारने का नहीं था। हमने ब्रिटिश सरकार पर बम फेका था। ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ना होगा और उसे स्वतंत्र करना होगा।
  5. जो व्यक्ति उन्नति के लिए राह में खड़ा होता हैं उसे परम्परागत चलन की आलोचना व विरोध करना होगा। साथ ही उसे चुनौति देनी होगी।
  6. क्रांति में सदैव संघर्ष हो यह आवश्यक नहीं। यह बम और पिस्तौल की राह नहीं हैं।
  7. सामान्यत: लोग परिस्थती के आदि हो जाते हैं और उनमे बदलाव करने की सोच मात्र से डर जाते हैं। अतः हमें इस भावना को क्रांति की भावना से बदलने की आवश्यकता हैं।
  8. क्रांति मनुष्य का जन्म सिद्ध अधिकार हैं। साथ ही आजादी भी जन्म सिद्ध अधिकार हैं और परिश्रम समाज का वास्तव में वहन करता हैं।
  9. मैं एक इंसान हूँ और जो भी चीज़े इंसानियत पर प्रभाव डालती हैं, मुझे उनसे फर्क पड़ता हैं।
  10. जीवन अपने दम पर चलता हैं, दूसरों का कन्धा अंतिम यात्रा में ही साथ देता हैं।
  11. कठोरता व आजाद सोच ये दो क्रातिकारी होने के गुण हैं।
  12. कोई व्यक्ति तब ही कुछ करता हैं, जब वह अपने कार्य के परिणाम को लेकर आश्वस्त होता हैं जैसे हम असेम्बली में बम फेकने पर थे।
  13. अहिंसा को आत्म विश्वास का बल प्राप्त हैं, जिसमें जीत की आशा से कष्ट सहन किया जाता हैं। अगर यह प्रयत्न विफल हो जाये तब क्या होगा ? तब हमें इस आत्म शक्ति को शारीरक शक्ति से जोड़ना होता हैं ताकि हम अत्याचारी दुश्मन की दया पर न रहे।
  14. मैं यह मानता हूँ कि मैं महत्वकांक्षी, आशावादी व जीवन के प्रति उत्साही हूँ। लेकिन आवश्यकता अनुसार मैं इन सबका परित्याग कर सकता हूँ।

यह जीवनी सार्वजनिक स्रोतों में उपलब्ध जानकारी पर आधारित है और इसे पूरी तरह से सटीक नहीं माना गया है। उल्लेखित विवरण केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए हैं, और पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे तथ्यों की पुष्टि अपने स्वयं के शोध और विश्वसनीय स्रोतों के माध्यम से करें।