इंदिरा गांधी का जीवन परिचय                                      Indira Gandhi  Biography in Hindi

भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में पहचान बनाने वाली इंदिरा गांधी की जीवनी बेहद दिलचस्प है। इंदु से इंदिरा और फिर प्रधानमंत्री बनने का उनका सफर न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि भारत में महिला सशक्तिकरण के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय भी है। इंदिरा गांधी 1966-77 और 1980-84 तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं और 20वीं सदी की राजनीति में सबसे प्रसिद्ध और शक्तिशाली महिलाओं में से एक मानी जाती हैं। उनके पिता जवाहरलाल नेहरू थे, जो स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री (1947-64) रहे।

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इंदिरा गांधी का संक्षिप्त विवरण (Indira Gandhi Brief Summary):

जन्म दिन : 19 नवंबर 1917

आयु : 66 साल

जन्म का स्थान : इलाहाबाद

शिक्षा   : विश्वविद्यालय शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की

पिता : जवाहरलाल नेहरू

माता : कमला नेहरू

व्यवसाय : राजनीतिज्ञ

पुत्र : संजय गाँधी और राजीव गाँधी

राष्ट्रीयता : भारतीय

देश : भारत

मृत्यु: 31 अक्टूबर 1984

इंदिरा गांधी का जीवन परिचय (Indira Gandhi Biography in Hindi):

इंदिरा जी का जन्म मोतीलाल नेहरू के परिवार 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद में हुआ था, जिन्होंने देश की आजादी में योगदान दिया था। इंदिरा के पिता जवाहरलाल एक सुशिक्षित वकील और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सक्रिय सदस्य थे। वह नेहरू की इकलौती संतान थीं, इंदिरा अपने पिता के बाद सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाली दूसरी प्रधानमंत्री हैं। इंदिरा गांधी (1917-1984) कमला और जवाहरलाल नेहरू की इकलौती संतान थीं। उन्होंने अपना बचपन इलाहाबाद में बिताया, जहाँ नेहरू परिवार का निवास था । उन्होंने अपनी कॉलेज की शिक्षा ऑक्सफोर्ड के सोमरविले कॉलेज में प्राप्त की। उनके बचपन की एक प्रसिद्ध तस्वीर में उन्हें महात्मा गांधी के बिस्तर के पास बैठे हुए दिखाया गया है, जब वे अपने उपवास से उबर रहे थे; और हालाँकि वे स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल नहीं थीं, इंदिरा में बचपन से ही देशभक्ति की भावना थी, उस समय भारत के राष्ट्रवादी आंदोलन की एक रणनीति में विदेशी ब्रिटिश उत्पादों का बहिष्कार करना भी शामिल था। और उस छोटी सी उम्र में इंदिरा ने विदेशी वस्तुओं की होली जलते हुए देखा था, जिससे प्रेरित होकर 5 साल की इंदिरा ने भी अपनी प्रिय गुड़िया को जलाने का फैसला किया, क्योंकि उनकी गुड़िया भी इंग्लैंड में बनी थी।

इंदिरा गाँधी की वानर सेना (Indira Gandhi Vanar Sena):

इंदिरा जी जब 12 साल की थीं, तब उन्होंने कुछ बच्चों के साथ मिलकर वानर सेना बनाई और उसका नेतृत्व किया। इस समूह का नाम बंदर ब्रिगेड रखा गया, जो कि महाकाव्य रामायण में भगवान राम की मदद करने वाली बंदर सेना से प्रेरित था। बच्चों के साथ मिलकर उन्होंने भारत की आज़ादी के संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाद में इस समूह में 60,000 युवा क्रांतिकारी भी शामिल हुए थे, जिन्होंने कई आम लोगों को संबोधित किया, झंडे बनाए, संदेश दिए और प्रदर्शनों की जानकारी जनता तक पहुंचाई। ब्रिटिश शासन के दौरान यह सब करना बहुत जोखिम भरा था, लेकिन इंदिरा आज़ादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए उत्साहित थीं।

इंदिरा गाँधी की शिक्षा (Indira Gandhi Education): 

इंदिरा ने पुणे विश्वविद्यालय से मैट्रिकुलेशन किया और पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन से कुछ शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद, वह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सोमरविले कॉलेज में अध्ययन करने के लिए स्विट्जरलैंड और लंदन गईं। 1936 में, उनकी मां कमला नेहरू तपेदिक से बीमार हो गईं, और इंदिरा ने अपनी पढ़ाई के दौरान अपनी बीमार मां के साथ कुछ महीने स्विट्जरलैंड में बिताए। कमला की मृत्यु के समय जवाहरलाल नेहरू एक भारतीय जेल में थे।

इंदिरा गाँधी का पारिवारिक जीवन (Indira Gandhi Family Life):

जब इंदिरा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्य बनीं, तो उनकी मुलाकात फिरोज गांधी से हुई। फिरोज गांधी उस समय पत्रकार और युवा कांग्रेस के अहम सदस्य थे। इंदिरा ने अपने पिता की असहमति के बावजूद 1941 में फिरोज गांधी से शादी कर ली। इंदिरा ने पहले राजीव गांधी को जन्म दिया और दो साल बाद संजय गांधी को। इंदिरा की शादी फिरोज गांधी से हुई थी, लेकिन फिरोज और महात्मा गांधी के बीच कोई रिश्ता नहीं था। फिरोज आजादी की लड़ाई में उनके साथ थे, लेकिन वह पारसी थे, जबकि इंदिरा हिंदू थीं। और उस समय अंतरजातीय विवाह इतना आम नहीं था। दरअसल, इस जोड़ी को सार्वजनिक रूप से पसंद नहीं किया जा रहा था, इसलिए महात्मा गांधी ने इस जोड़ी का समर्थन किया और यह सार्वजनिक बयान दिया, जिसमें मीडिया से उनका अनुरोध भी शामिल था, “मैं अपमानजनक पत्रों के लेखकों के प्रति अपना गुस्सा कम करना चाहता हूं। मैं आपको इस शादी में नवविवाहितों को आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित करता हूं” और ऐसा कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने फिरोज और इंदिरा को राजनीतिक छवि बनाए रखने के लिए गांधी लगाने का सुझाव दिया था।

आज़ादी के बाद, इंदिरा गांधी के पिता जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने, और इस दौरान इंदिरा अपने पिता के साथ दिल्ली आ गईं। उनके दोनों बेटे उनके साथ थे, लेकिन फ़िरोज़ ने इलाहाबाद में रहने का निर्णय लिया, क्योंकि वह उस समय मोतीलाल नेहरू द्वारा शुरू किए गए समाचार पत्र नेशनल हेराल्ड में संपादक के रूप में कार्यरत थे।

इंदिरा गाँधी का राजनीतिक करियर (Indira Gandhi Political Career):

नेहरू परिवार भारत की केंद्र सरकार में एक प्रमुख परिवार था, इसलिए इंदिरा का राजनीति में प्रवेश कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। उन्होंने अपने बचपन में महात्मा गांधी को अपने इलाहाबाद के घर में आते-जाते हुए देखा था, जिससे उनको देश और देश की राजनीति में रुचि हुई।

1951-52 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने अपने पति फिरोज गांधी के लिए कई चुनावी सभाएं आयोजित कीं और उनके समर्थन में चुनाव अभियान का नेतृत्व किया। उस समय फिरोज रायबरेली से चुनाव लड़ रहे थे। जल्द ही फिरोज सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ एक प्रमुख चेहरा बन गए। उन्होंने कई भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर किया, जिसमें बीमा कंपनी और वित्त मंत्री टीटी कृष्णमाचारी का नाम भी शामिल था। उस समय वित्त मंत्री को जवाहरलाल नेहरू का करीबी माना जाता था।

इस तरह फिरोज राष्ट्रीय राजनीति की मुख्यधारा में शामिल हो गए और अपने कुछ समर्थकों के साथ उन्होंने केंद्र सरकार से अपना संघर्ष जारी रखा, लेकिन 8 सितंबर 1960 को दिल का दौरा पड़ने से फिरोज की मृत्यु हो गई।

इंदिरा गाँधी कांग्रेस अध्यक्ष (Indira Gandhi as Congress President):

1959 में इंदिरा गांधी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष चुना गया। उन्हें जवाहरलाल नेहरू की मुख्य सलाहकार टीम में शामिल किया गया। 27 मई 1964 को नेहरू की मृत्यु के बाद, इंदिरा गांधी ने चुनाव में भाग लेने का निर्णय लिया और उन्होंने जीत हासिल की। लाल बहादुर शास्त्री की सरकार में उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया।

इंदिरा गाँधी का भारत के प्रधानमंत्री के रूप में पहला कार्यकाल (Indira Gandi First Term as Prime Minister of India):

11 जनवरी 1966 को ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद, उन्होंने अंतरिम चुनावों में बहुमत हासिल किया और प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभाला। प्रधानमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियाँ रियासती खजाने को खत्म करने के प्रस्तावों का पारित होना, 1969 में भारत के चौदह सबसे बड़े बैंकों के साथ-साथ प्रमुख राज्यों के पूर्व शासकों और चार प्रीमियम तेल कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करना था। उन्होंने देश में खाद्य पदार्थों को हटाने में रचनात्मक कदम उठाए और 1974 में भारत के पहले भूमिगत विस्फोट के साथ देश को परमाणु युग में ले गए।

1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में इंदिरा गाँधी की भूमिका (Indira Gandhi Roll in India-Pakistan War in 1971):

दरअसल, 1971 में इंदिरा गांधी को एक बहुत बड़े संकट का सामना करना पड़ा था। युद्ध तब शुरू हुआ जब पश्चिमी पाकिस्तान की सेनाएं बंगाली पूर्वी पाकिस्तान में उनके स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए गईं। उन्होंने 31 मार्च को भीषण हिंसा के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन प्रतिरोध जारी रहा और लाखों शरणार्थी पड़ोसी देश भारत में घुसने लगे।

इन शरणार्थियों की देखभाल में भारत में संसाधनों का संकट था, जिसके कारण देश के भीतर तनाव भी काफी बढ़ गया। हालांकि भारत ने वहां स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे सेनानियों का समर्थन किया। स्थिति तब और जटिल हो गई जब अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन चाहते थे कि अमेरिका पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा हो, जबकि चीन पहले से ही पाकिस्तान को हथियार दे रहा था और भारत ने “शांति, मैत्री और सहयोग की संधि” पर हस्ताक्षर किए।

पश्चिमी पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में नागरिकों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया, मुख्य रूप से हिंदुओं को निशाना बनाया, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 10 मिलियन पूर्वी पाकिस्तानी नागरिक देश छोड़कर भारत में शरण लेने के लिए चले गए। शरणार्थियों की बड़ी संख्या ने इंदिरा गांधी को पश्चिमी पाकिस्तान के खिलाफ़ आज़ादी के लिए आज़मी लीग के संघर्ष का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया। भारत ने सैन्य सहायता प्रदान की और पश्चिमी पाकिस्तान के खिलाफ़ लड़ने के लिए सेना भी भेजी।

 जब 3 दिसंबर को पाकिस्तान ने भारत के ठिकानों पर बमबारी की और युद्ध शुरू हुआ, तो इंदिरा ने बांग्लादेश की आज़ादी के महत्व को समझा और वहाँ के स्वतंत्रता सेनानियों को शरण देने और बांग्लादेश के निर्माण का समर्थन करने की घोषणा की। 9 दिसंबर को निक्सन ने अमेरिकी जहाजों को भारत भेजने का आदेश दिया, लेकिन 16 दिसंबर को पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण कर दिया।

अंततः 16 दिसंबर 1971 को ढाका में पश्चिमी पाकिस्तान बनाम पूर्वी पाकिस्तान युद्ध समाप्त हो गया। पश्चिमी पाकिस्तानी सशस्त्र बलों ने भारत के समक्ष आत्मसमर्पण के कागजात पर हस्ताक्षर किए, जिससे एक नए देश का जन्म हुआ, जिसका नाम बांग्लादेश रखा गया। पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के युद्ध में भारत की जीत ने इंदिरा गांधी की एक चतुर राजनीतिक नेता के रूप में लोकप्रियता को दर्शाया। इस युद्ध में पाकिस्तान का घुटने टेकना न केवल बांग्लादेश और भारत के लिए, बल्कि इंदिरा के लिए भी एक जीत थी। इसी वजह से युद्ध की समाप्ति के बाद इंदिरा ने घोषणा की कि मैं किसी भी दबाव में काम करने वाली व्यक्ति नहीं हूँ, चाहे वह कोई व्यक्ति हो या देश।

इंदिरा गाँधी का आपातकाल लागू करना (Imposition of Emergency):

1975 में विपक्षी दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बढ़ती महंगाई, अर्थव्यवस्था की खराब स्थिति और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के खिलाफ इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए। उसी वर्ष इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि इंदिरा गांधी ने पिछले चुनाव में अवैध तरीकों का सहारा लिया था, और यह मौजूदा राजनीतिक हालात में आग में घी डालने जैसा था। इस फैसले के तहत इंदिरा को तुरंत अपनी सीट खाली करने का आदेश दिया गया, जिससे लोगों में उनके प्रति गुस्सा और बढ़ गया। 26 जून 1975 को इस्तीफा देने के बजाय, श्रीमती गांधी ने “देश में अशांत राजनीतिक स्थिति के कारण” आपातकाल की घोषणा कर दी।

आपातकाल के दौरान उन्होंने अपने सभी राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया, और इस समय नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को रद्द कर दिया गया था। प्रेस पर भी कड़ी सेंसरशिप लागू की गई थी। गांधीवादी समाजवादी जयप्रकाश नारायण और उनके समर्थकों ने भारतीय समाज में बदलाव लाने के लिए छात्रों, किसानों और मजदूर संगठनों को एक ‘संपूर्ण अहिंसक क्रांति’ में एकजुट करने की कोशिश की। बाद में नारायण को भी गिरफ्तार कर लिया गया और जेल भेज दिया गया। 1977 की शुरुआत में इंदिरा ने आपातकाल को समाप्त करते हुए चुनावों की घोषणा की, लेकिन उस समय जनता ने आपातकाल और नसबंदी अभियान के कारण इंदिरा का समर्थन नहीं किया।

इंदिरा गाँधी का सत्ता छिनना और विपक्ष की भूमिका में आना (Snatching Power and Role of Opposition):

माना जाता है कि आपातकाल के दौरान उनके छोटे बेटे संजय गांधी ने देश को पूरी तरह से चलाने की कोशिश की और झुग्गी-झोपड़ियों को सख्ती से हटाने का आदेश दिया। इसके अलावा, एक बेहद अलोकप्रिय नसबंदी कार्यक्रम ने इंदिरा को विपक्ष में बदल दिया था। फिर भी, 1977 में इंदिरा ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा कि उन्होंने विपक्ष को तोड़ दिया है और चुनाव की मांग की। मोरारजी देसाई और जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में उभरते जनता दल गठबंधन ने उन्हें हरा दिया। पिछली लोकसभा में 350 सीटों की तुलना में कांग्रेस केवल 153 लोकसभा सीटें जीतने में सफल रही।

इंदिरा गाँधी का भारत के प्रधानमंत्री के रूप में दूसरा कार्यकाल (Indira Gandhi Second Term as Prime Minister of India):

इंदिरा ने जनता पार्टी के सहयोगियों के बीच चल रहे आंतरिक संघर्ष का फ़ायदा उठाया। उस समय, जनता पार्टी की सरकार ने इंदिरा गांधी को संसद से बाहर निकालने के प्रयास में उनकी गिरफ़्तारी का आदेश दिया। हालांकि, यह रणनीति उनके विरोधियों के लिए विनाशकारी साबित हुई और इससे इंदिरा गांधी को व्यापक सहानुभूति मिली। अंततः, 1980 के चुनावों में कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत हासिल की और इंदिरा गांधी एक बार फिर भारत की प्रधानमंत्री बनीं। वास्तव में, उस समय जनता पार्टी की स्थिति भी स्थिर नहीं थी, जिसका पूरा फ़ायदा कांग्रेस और इंदिरा ने उठाया।

1981 के सितंबर में, एक सिख आतंकवादी समूह “खालिस्तान” की मांग कर रहा था, और यह समूह अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर में घुस गया था। मंदिर परिसर में हजारों नागरिकों की मौजूदगी के बावजूद, इंदिरा गांधी ने सेना को ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत पवित्र मंदिर में जाने का आदेश दिया।

इंदिरा गाँधी की हत्या (Indira Gandhi Assassination):

31 अक्टूबर 1984 को गांधी जी के अंगरक्षक सतवंत सिंह और बंट सिंह ने सवर्ण मंदिर में हुए नरसंहार का बदला लेने के लिए कुल 31 गोलियां मारकर इंदिरा गांधी की हत्या कर दी। यह घटना नई दिल्ली के सफदरगंज रोड पर हुई थी।

इंदिरा गाँधी के बारे में रोचक तथ्य (Interesting Facts about Indira Gandhi):

माना जाता है कि इंदिरा गांधी अपनी छवि को बनाए रखने पर बहुत ध्यान देती थीं। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान वे श्रीनगर में छुट्टियां मना रही थीं। सुरक्षा अधिकारी द्वारा यह बताए जाने के बावजूद कि पाकिस्तान उनके होटल के बहुत करीब आ गया है, वे यह जानते हुए भी वहीं रुकी रहीं। गांधी का वहां से हटने से इनकार करना, इस बात ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खींचा, जिसके कारण उन्हें विश्व मंच पर भारत की सशक्त महिला के रूप में पहचान मिली।

कैथरीन फ्रैंक अपनी किताब “द लाइफ ऑफ इंदिरा नेहरू गांधी” में लिखती हैं कि इंदिरा का पहला प्यार शांतिनिकेतन में उनके जर्मन शिक्षक थे, इसके बाद जवाहरलाल नेहरू के सचिव एम.ओ. मथाई के साथ उनकी निकटता का रिश्ता रहा। उसके बाद उनका नाम योग शिक्षक धीरेंद्र ब्रह्मचारी और अंत में कांग्रेस नेता दिनेश सिंह के साथ भी जुड़ा। लेकिन इतना कुछ होने के बावजूद इंदिरा के विरोधी उनकी राजनीतिक छवि को नुकसान नहीं पहुंचा पाए, और उनके आगे बढ़ने के रास्ते को रोक नहीं पाए।

1980 में विमान दुर्घटना में संजय की मौत के बाद गांधी परिवार में तनाव बढ़ गया और 1982 तक इंदिरा और मेनका गांधी के बीच कड़वाहट काफी बढ़ गई। इस कारण इंदिरा ने मेनका को घर से निकल जाने को कहा, लेकिन मेनका ने बैग के साथ घर से निकलते हुए अपनी फोटो भी मीडिया को दे दी। और जनता के सामने भी यह घोषणा कर दी, उन्हें नहीं पता कि उन्हें घर से क्यों निकाला जा रहा है। वह अपनी मां से ज्यादा अपनी सास इंदिरा को मानती रही हैं। मेनका अपने बेटे वरुण को भी अपने साथ ले गई थीं और इंदिरा के लिए अपने पोते से दूर रहना काफी मुश्किल था।

20वीं सदी में महिला नेताओं की संख्या कम ही थी, जिसमें इंदिरा का नाम भी शामिल है। लेकिन फिर भी इंदिरा की एक दोस्त थीं, मार्गरेट थैचर। इन दोनों की मुलाकात 1976 में हुई थी। और यह जानते हुए भी कि इंदिरा पर आपातकाल के दौरान तानाशाही का आरोप लगाया गया था, और वह अगला चुनाव हार गईं, मार्गरेट ने इंदिरा का साथ नहीं छोड़ा थैचर भी इंदिरा की तरह एक बहादुर और मजबूत प्रधानमंत्री थीं, जिसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आतंकवादी हमले की आशंका के बावजूद वह इंदिरा के अंतिम संस्कार में पहुंची थीं। उन्होंने इंदिरा की असामयिक मौत पर राजीव को एक संवेदनशील पत्र भी लिखा था।

जब इंदिरा प्रधानमंत्री बनीं, तो कांग्रेस में एक ऐसा वर्ग था जो किसी महिला के हाथ में सत्ता को स्वीकार नहीं कर सकता था। फिर भी, इंदिरा ने उन सभी व्यक्तियों और पारंपरिक सोच के कारण राजनीति में आने वाली बाधाओं का साहस के साथ सामना किया।

इंदिरा ने देश में कृषि के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य किए। इसके लिए उन्होंने कृषि से संबंधित नई योजनाएं बनाई और कार्यक्रम आयोजित किए। इनमें विभिन्न फसलों की खेती और खाद्य पदार्थों का निर्यात करना जैसे मुख्य उद्देश्य शामिल थे। उनका लक्ष्य देश में रोजगार की समस्या को कम करना और खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करना था। यहीं से हरित क्रांति की शुरुआत हुई।

इंदिरा गांधी ने भारत को एक सक्षम आर्थिक और औद्योगिक राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके कार्यकाल के दौरान, भारत ने विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में भी काफी प्रगति की। इसी समय, किसी भारतीय द्वारा चांद पर कदम रखना देश के लिए गर्व का क्षण था।

इंदिरा गाँधी के नाम पर विरासत (Heritage in the name of Indira Gandhi):

नई दिल्ली में उनके घर को एक संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है, जिसे इंदिरा गांधी स्मारक संग्रहालय के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा, उनके नाम पर कई मेडिकल कॉलेज और अस्पताल भी स्थापित किए गए हैं।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU), इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय (अमरकंटक), इंदिरा गांधी महिला तकनीकी विश्वविद्यालय, और इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय (रायपुर) जैसे कई विश्वविद्यालय हैं। इसके साथ ही, इंदिरा गांधी विकास अनुसंधान संस्थान (मुंबई), इंदिरा गांधी प्रौद्योगिकी संस्थान, इंदिरा गांधी प्रशिक्षण महाविद्यालय, इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, और इंदिरा गांधी दंत चिकित्सा संस्थान जैसे कई शैक्षणिक संस्थान भी मौजूद हैं।

देश की राजधानी दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का नाम भी इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। देश के सबसे प्रसिद्ध समुद्री पुल पाम बान ब्रिज का नाम भी इंदिरा गांधी रोड ब्रिज है। इसके अलावा, देश भर के कई शहरों में कई सड़कों और चौराहों का नाम भी उनके नाम पर रखा गया है।

इंदिरा गांधी जी को पुरस्कार (Indira Gandhi Ji Awarded):

इंदिरा गांधी को 1971 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। 1972 में उन्हें बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए मैक्सिकन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। फिर 1973 में द्वितीय वार्षिक पदक, एफएओ (2nd Annual Medal, FAO) और 1976 में नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा हिंदी में साहित्य वाचस्पति पुरस्कार दिया गया।

इंदिरा को कूटनीति के क्षेत्र में बेहतरीन काम करने के लिए इटली के इस्लबेला डी’एस्टे पुरस्कार के अलावा 1953 में यूएसए में मदर्स अवार्ड भी दिया गया था। उन्हें येल विश्वविद्यालय से हॉलैंड मेमोरियल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

1967 और 1968 में फ्रेंच इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन के सर्वेक्षणों के अनुसार, वह फ्रांसीसी लोगों द्वारा सबसे अधिक पसंद की जाने वाली महिला राजनीतिज्ञ थीं।

1971 में यूएसए के विशेष गैलप पोल सर्वेक्षण के अनुसार, वह दुनिया की सबसे सम्मानित महिला थीं। इसी वर्ष अर्जेंटीना सोसायटी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ एनिमल्स ने भी उन्हें डिप्लोमा ऑफ ऑनर से सम्मानित किया।

इंदिरा गांधी का जीवन दुनिया में भारत की महिलाओं को एक सशक्त महिला के रूप में पहचान दिलाने वाला रहा है। हालांकि उनके व्यक्तित्व को दो पक्षों से समझा जाता रहा है और उनके समर्थकों के साथ-साथ विरोधियों की संख्या भी काफी बड़ी है। उनके लिए लिए गए कई राजनीतिक और सामाजिक फैसले भी अक्सर चर्चा का विषय रहते हैं, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इंदिरा गांधी के कार्यकाल में भारत ने विकास के कई आयाम स्थापित किए थे और उन्होंने विश्व पटल पर भारत की छवि को बदला था।

यह जीवनी सार्वजनिक स्रोतों में उपलब्ध जानकारी पर आधारित है और इसे पूरी तरह से सटीक नहीं माना गया है। उल्लेखित विवरण केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए हैं, और पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे तथ्यों की पुष्टि अपने स्वयं के शोध और विश्वसनीय स्रोतों के माध्यम से करें।